आओ, चले शिव की ओर।
शिव शिष्य हरीन्द्रनन्द।
धर्मपत्नी राजमणि नीलम, जो जंगलो में पली-बढ़ी, ममत्व में नर्मदा-सी निर्मलता और संस्कारों में हिमालय सदृश धवल दृढ़ता लिए, शिव शिष्यता की बगिया को अपनी संतान के समान सींचा सँवारा।
अनुक्रमणिका
सिंधु एवं वैदिक सभ्यता में शिव. 1
उपनिषद् एवं पुराणों में शिव
महाभारत एवं मानस में शिव. .19
शिवोपासना का सिंहावलोकन. .27
शिव और तांत्रिक धाराएं .. .37
शिव के विभिन्न स्वरूप .. ..43
शास्त्र और शक्ति उपासना. .61
शक्ति एवं कुल-कुंडलिनी रहस्य .69
गुरु, सद्गुरु एवं जगत गुरु .... .79
शिव का गुरु पद. ..85
भारतीय संस्कृति में शिव. .91
साहित्य में सर्वोच्च गुरु. 101
अध्यात्म में अंक 109
दीक्षा एवं गुरु दक्षिणा 113
ज्योतिर्लिंग, शिवलिंग की पूजा 123
मानव एवं महागुरु महादेव. 131
शिव की शिष्यता में दया, चर्चा एवं नमन. 143
नमः शिवाय .. 153
हमारे गुरु शिव (शिष्यानुभूति). 163
आओ, चलें शिव की ओर. 177
शिव की लोक प्रचलित स्तुतियां. 211
हरीन्द्रानन्द
सरकार के संयुक्त सचिव,
मंत्रिमंडल, बिहार (अ.प्रा.)
मैं हरीन्द्रानन्द ..
बस चल रहा हूँ। बहत्तर वर्षों से चल ही रहा हूँ अपने पांव में
अनेकानेक जंजीरों के बावजूद। यहां सब को चलना ही पड़ता है।
जिस धरती पर बैठा हूँ वह भी तो चलायमान है। वैसे अब थक-सा
गया हूँ। जीवन का अंतिम पड़ाव है। अब पांव साथ नहीं दे रहे,
कभी घुटनों के बल तो कभी पांव के सहारे चलता जा रहा हूँ।
अनायास विचारों की पोटली लिए मन भी चल रहा है। कभी जगत
की वीथियों में घूमता है तो कभी शिव के राजमार्ग में।
व्यक्ति जगत में पैदा होता है, पलता बढ़ता है। अध्यात्म भी
तो यहीं उत्पन्न होता है, मन के एक मोड़ से। पता नहीं उस मोड़
पर मैं कब मुड़ गया था। प्रत्यक्षतः बाल्यकाल से ही पूजा-पाठ की
पगडंडियों में भटकता रहा; मंजिल का पता नहीं था; बस निरूद्देश्य
भटकता रहा।
बारह वर्ष की उम्र में श्मशान और अघोर तंत्र की क्रियाओं से
पाला पड़ा। एक लगन थी, एक तड़प थी; उस रहस्यमयी दुनियां को
| जानने की जो दृश्य नहीं है, जिसका अनुभव भी अपनी ज्ञानेंद्रियों
से नहीं हो पाता है। अनजाने कारणों से बाल्यकाल से ही अपने
आस-पास घटने वाली घटनाओं को देखकर उन घटनाओं के अज्ञात
सूत्रधार को जानने की प्रबल उत्सुकता कालक्रम में पाथेय बन गई।
शिव की तस्वीरों पर साइफन की मदद से पानी गिराता मेरा बचपन
विश्व के अनेकानेक दर्शन, वादों व सिद्धान्तों की कलई चढ़ता वयस्क
हुआ। मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि और मान्यताओं ने सदैव मुझे पुस्तकों
आओ, चलें शिव की ओर i
लेखक परिचय
31 अक्टूबर 1948, विक्रम संवत्
2005 कार्तिक कृष्ण पक्ष, चतुर्दशी
को विश्वनाथ सिन्हा एवं राधा देवी
(स्वर्गीय द्वय) के अमलोरी गाँव, जिला
सिवान, बिहार, में प्रथम संतान के
रूप में श्री हरीन्द्रानन्द जी का जन्म
हुआ। सुबह जन्म हुआ, तिथि खंडित
हुई और शाम में स्वतः पूरे देश में
दीपावली मनायी गयी। इनके पिता
जो स्वयं एक उच्च पदस्थ पदाधिकारी
थे, अपने ज्येष्ठ पुत्र हरीन्द्रानन्द के
भविष्य को तराश कर अलग ऊँचाई देना
चाहते थे, वहीं दूसरी ओर आप रहस्यमयी दुनियां की खोज में लगे रहे और
परिणाम आया पारलौकिकता का दुर्गम पर्वतारोहण।
समय के साथ तालमेल बैठाते हुए आपने विधि में स्नातकोपरान्त वर्ष
1978 से बिहार प्रशासनिक सेवा में योगदान दिया। दिनभर राजकीय कार्य की
व्यस्तता और अवकाश के क्षणों में अहर्निश शिव शिष्यता की अवधारणा के प्रसार
में तल्लीनता। बिहार सरकार के संयुक्त सचिव पद से सेवानिवृत्ति के उपरांत
नवम्बर 2008 से दिल की धड़कनों के साथ बस निरंतर चल पड़ा महागुरु
महादेव की शिष्यता का उद्घोष।
धर्मशास्त्रों एवं दर्शनों को पढ़ने का शौक कम उम्र से ही था। धर्म एवं
अध्यात्म से संबंधित अनेकानेक आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित
होते आए हैं। ' हमारे गुरु शिव-शिष्यानुभूति' इनके द्वारा रचित लघु पुस्तक है
जिसका अनुवाद विभिन्न भाषाओं में हो चुका है। ' लॉर्ड शिव आवर ओन गुरु
माय स्पिरिचुअल जर्नी' शीर्षक से अंग्रेजी में भी इनकी पुस्तक प्रकाशित हुई है।
ISBN No. 978-81-948525-0-6
91178 819 41185 2 506
आखर पब्लिकेशन, दीघा, पटना। 390/
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