शिव शिष्य होने का मापदंड क्या है और शिव कार्य का मूल उद्देश्य क्या है?


Shiv charcha, shiv charcha bhajan, shiv charcha geet, shiv charcha ke geet,shiv charcha videos, shiv hi guru hai, shiv guru,
Sahab shree Harindranand ji

शिष्य का अर्थ ही है, "अनुशासित किये जाने योग्य"। अर्थात जो गुरु का आदेश माने। जो यह समझे कि गुरु का आदेश हमेशा शिष्य की भलाई के लिए होता है। जो जरूरत से ज्यादा दिमाग नहीं लगाए और न ही लालबुझक्कड़ की तरह अनुमान लगाए। जो गुरु के आदेश में काट-छांट या जोड़-तोड़ करने का प्रयास नहीं करे।
और सबसे बढ़कर यह कि खुद गुरु बनने का प्रयास नहीं करे।
इसके लिए उसे धन या सम्मान के लोभ से परे जाना पड़ेगा, जिसके लिए गुरुदया की आवश्यकता है।

तो गुरुआदेश पर चलने की चाहत और प्रयास ही शिवशिष्य होने का मापदंड है।

शिव चूंकि जगत के गुरु हैं, इसीलिए कोई पूर्व पात्रता की आवश्यकता नहीं है। बस एक नीयत एक चाहत का होना कि मुझे शिष्य बनना है, इतना ही काफी है। क्योंकि बांकी कुछ तो बिना गुरुदया के सम्भव ही नहीं।

शिव कार्य का मूल उद्देश्य तो बस कल्याण ही है। खुद का भी और जगत का भी। कल्याण, अर्थात समग्र समाधान, चाहे वो लौकिक हो या पारलौकिक, व्यक्तिगत हो या सामुहिक। यह तभी संभव होगा, जब हम शिष्य बनेंगे।

शिष्य बनने के लिए, दूसरों को भी शिष्य बनाने का प्रयास अपेक्षित है, जिसमें 3 सूत्र सहायक हैं।

मूलभूत रूप से मेरी चाहत क्या है, मेरा उद्देश्य क्या है, यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि मंशा बदल जाने से दिशा बदल जाती है और दिशा बदल जाने से दशा बदल जाती है
और मंशा सही रहे, इसके लिए भी गुरुदया की जरूरत है...

जांचा, परखा ओर तथ्य पर आधारित ज्ञान को विज्ञान कहते हैं। अर्थात विज्ञान में अनुमान का कोई स्थान नहीं है।

ठीक यही बात अध्यात्म में भी है।  स्वयं को जानने के विज्ञान को अध्यात्म कहते हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं हैं कि, अध्यात्म में विज्ञान है ही, बल्कि अध्यात्म एक व्यापक विज्ञान है, लेकिन जरूरी नहीं कि विज्ञान में हमेशा अध्यात्म हो ही।

हालांकि अध्यात्म से रहित विज्ञान के दीर्घकालिक परिणाम विनाशकारी ही होते हैं, जो आज हो भी रहा है।

पाश्चात्य पदार्थवादी विज्ञान ने सृजन से अधिक विनाश ही किया है। अतः आवश्यकता है कि पुनः पूरब के सर्वसमावेशी (holistic approach) विज्ञान की ओर वापस लौटा जाय।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ