की मानव दानव बन चुका है. दानव से भी नीचे मनुष्य गिर चुका है.
रावण ने भी सीता का अपहरण किया तो उन्हें अशोक वाटिका में रखा. विवाह के लिए उनकी रजामंदी मांगता रहा. आज सरेआम बलात्कार हो रहे हैं.
अपने सुख के लिए भाई, भाई की, पुत्र, पिता की, पति पत्नी की हत्या करने से नहीं चूक रहा. प्रेम, जो मानव का मूल गुण है, (मूल गुण- जिससे उस वस्तु की पहचान हो, जैसे आग का मूल गुण- गर्मी, बर्फ का मूल गुण ठंढक) समाप्त होता जा रहा है.
आज परिवेश बदल चुका है. आज के परिवेश में आवश्यक है की मनुष्य फिर से उस जगतगुरु की शरण में जाय. आज मनुष्य सांसारिक गुरुओं के कंट्रोल की चीज़ ही नहीं रह गया है.
तीसरी बात की गुरु की आवश्यकता उस उम्र से होती है जबसे बच्चे को समझ आती है.
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Shivcharcha |
क्योंकि गुरु का काम होता है जीवन का विकास करना और विकास की सही उम्र है बचपन. गुरु अपने शिष्य के व्यक्तित्व के सर्वोत्तम पक्ष को उजागर करते हैं.
लोग समझते हैं की जब सारे कामों से बरी हो जाँय तब गुरु बनायें. कितनी बड़ी नादानी है.
संसार में आये हैं तो सांसारिक सुख भोगना हमारा अधिकार है. लौकिक सुख गुरु की दया से ही प्राप्त होते हैं. वरना समझ और ज्ञान के अभाव में भौतिक सुख हम नहीं भोगते, वह ही हमें भोगने लगते हैं.
भोगी की तरह सुख को भोगना और स्वयं भुक्त हो जाना दो पृथक स्थितियां हैं. कहा गया है गुरु की दया ही लौकिक एवं परलौकिक चरमोत्कर्ष का रहस्य है.
अपने शिष्य भाव के जागरण हेतु सदैव यह बात ध्यान में रखनी चाIहिए. अतः बचपन से ही गुरु की आवश्यकता है. सारे मनोविकार बचपन में ही आते हैं.
आज बच्चे तनावग्रस्त हैं.
अब ज़रा सोचिये इस उम्र में बच्चों के लिए शिव से उपयुक्त दूसरा गुरु कहाँ मिलेगा. कहाँ ढूंढेंगे बच्चे गुरुओं को जिनके साथ अनेकों वर्जना बंधन लगे हैं. सांसारिक गुरु बंधन लगते हैं
क्योंकि वह मनुष्य हैं,
वे हमारे मन को बदल नहीं सकते. शरीर धारी गुरुओं की शक्ति और सामर्थ्य की सीमा होती है. अतः वे कहते हैं अमुक काम मत करो, अमुक चीज़ मत खाओ, जो आज के परिवेश में असंभव है.
आज गलत खान पान, व्यवहार हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है.
अतः उन्हें छोड़ कर गुरु बनाना आज के लोगों के लिए संभव नहीं. यह कारण भी है
जो लोग आध्यात्म से दूर हो रहे हैं. परन्तु जगतगुरु कोई बंधन नहीं लगाते. कोई भी व्यक्ति जो कुछ भी खाता हो पीता हो, उन्हें गुरु बना सकता है, तभी जगतगुरु नाम की सार्थकता है.
वो मात्र अपनी दया से जीव को शिवभाव में ले आते हैं. उनकी दया से मन परिवर्तित होने लगता है,
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Didi nilam anand ji |
बुराईयाँ दूर होने लगती हैं. मन को स्वस्थ और रोगमुक्त वही बना सकता है जिसने मन को बनाया है. जैसे टीवी वही ठीक कर सकता है जो उसका मिस्त्री हो, फ्रिज वही ठीक कर सकता है जो उसका मिस्त्री हो. यह कारण भी है जो हमें शिव को गुरु बनाने की ओर प्रेरित करता है.
1 टिप्पणियाँ
Required materials for the people. Excellent .
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