वही विचार जब प्रगाढ हो जाता है तो भाव का रूप धारण करता है और वही भाव जब घनिभुत या प्रगाढ हो जाता है तो प्रेम उत्पन्न होता है।
कि शिव को अपना गुरु बनाये , इसके लिए साहब श्री के द्वारा जो हमे तीन सूत्र गुरु दया से मिला है इसी को करने से हमारे आपके मन एक विचार पर खडा होगा कि शिव मैरे गुरु है इसके लिए हमें अपने मन को संकल्पित करना होगा।
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आओ चले शिव की ओर। |
जैसे एक सिनेमा या फिल्म के प्रोजेक्टर से प्रकाशमान कर कुछ दृश्यों को जीवित कर सकते हैं, हालाँकि उन दृश्यों का अपना कोई वास्तविक रूप नहीं है पर हम उन्हें सत्य मानते हैं ,
उसी प्रकार आत्मा एक विशाल शक्ति पुंज सत्ता है जो सत्य और नित्य है. मनुष्य रूप ‘धार” कर यह शक्ति जब किसी भी संसार में अवतरित होती है
तो वह समय की परिधि और कुछ विशेष कारकों और कारणों के कारण अपने आप को व्यक्त करने के लिए एक प्रक्षेपण की तरह अपनी किरणो द्वारा एक न दिखने वाले लेकिन सूक्ष्म “काल” चक्र का निर्माण करती है
और उसके द्वारा यह अपने आपको व्यक्त, संचारित और गति में रखने के लिए, अपने छिपे, रजिस्टर या संचित भावों को “हम” तक पहुंचा सके, मन रूपी वाहन को दोबारा भौतिक जगत के नियमों में बंधे शरीर को नियमित करने हेतु अपनी स्वयं की सत्ता बनाती है.
वास्तव में मन यहाँ दो भागों में बंट जाता है.
एक उसका आधार और जो उसे प्रोजेक्ट या प्रक्षेप कर या आयोजित कर सत्य की परिधि में रहने को कहता है,
और दूसरा सांसारिक भाग जो मोह माया और अवतरित जीवन के काल को, स्थानीय देश, संस्कृति की चुंबकीय धारणाओं से प्रभावित हो अपने को अपने आधार से अलग समझने लगता है.
यहीं इसी भेद के कारण जीवन यान अपने वास्तविक चालक के हाथों से निकल कर, अपने आप को माया का ही अंश समझने के कारण मूल्यह्रास हो गिराता चला जाता है.
के “हम” या मैं एक सत्य सत्ता है कहीं हृदय या शरीर के केंद्र में विद्यमान है.
व्यवहारिक स्तर पर चेतन मन ही हमें चलाता है. पर इसे कौन चलाता है?
कोई विश्वास नहीं करेगा पर यह मैं का मालिक न चेतन है न अवचेतन बल्कि आत्मा के केंद्र कक्ष में स्थापित अचेतन मन को चलाने वाला स्वयं
आत्मा केंद्र है. हमें चलाने वाली सत्ता को हम अधिकाँश जीवन में समझ नहीं पाते और उसकी खोज में मंदिरों, मस्जिदो, गिरजों, मकबरों और तीर्थो
में व्यर्थ अपना समय गंवाते हैं. अधिकांश जड़ मूर्ख लोग अंतिम समय तक अपने स्वयं के मालिक को पहचान नहीं पाते.
इसी अंतरात्मा में स्थापित देव शक्ति को जानना ही आत्म-ज्ञान है।
आत्मा के भिन्न कक्षों और भागों के ज्ञान से हम अपने जीवन को चलाने वाली शक्तियों को न केवल समझ सकते हैं, उन्हें हम स्वयं अपने हाथ में
लेकर अपनी काया और जीवन को सम्पूर्ण रूप से बदल सकते हैं.
मन ही शारीरिक और मानसिक, बीमारियों और व्याधियों को बनाने वाला है और ठीक करने वाला है।
और यही मन हमें पाप करने से रोकता है.
लेकिन हम मोह,माया और भ्रष्ट लोगों की नक़ल कर अपने जीवन का अधिकांश समय गवां देते हैं.
आगामी अगले जन्म और पिछले जन्मों की जानकारी भी नहीं हो पाती. उन्हें छोड़ें इसी जन्म को हम सही ढंग से न समझने के कारण अपना समय व्यर्थ खो देते हैं.
मन के रहस्यों को जानकार हम मन और आत्मा दोनों का स्वामित्व पा सकते हैं. प्राचीन काल में आत्मज्ञान पाने वाले और व्यवहारिक साधको को स्वामी कहा जाता था. आजकल के साधक छोटे मोटे ज्ञान को कुछ पुस्तकें पढ़ कर या किसी कथावाचक गुरु की बाते सुनकर पूर्णता समझते हैं
यहाँ वहां भटकते हैं
और अज्ञानतावश प्राचीन स्थानों, मंदिरों, तीर्थो, और नदियों, पहाड़ों में ईश्वर को ढूंढते फिरते हैं. या फिर झूठमूठ के आदमी द्वारा चलाये गए कथित “धर्म” या संस्थायों, या किन्ही मृत पीरों, फकीरों में कुछ पाने की चाह में भटकते हैं. यह सब किसी भी काम नहीं आता.
यह सब लोग जन्मों के चक्रव्यूह में अपनी अज्ञानता से फंसे रहते हैं. अपने आप को जानना ही आत्म ज्ञान है
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