विज्ञान और अघ्यात्म क्या है..?

● विज्ञान और अघ्यात्म
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एक बात बताईए विग्यान के बारे में बोलता कौन है ? ➡ इंसान।

तो आपकी आवाज पर नियंत्रण किसका है ? ➡ दिमाग का।
आपके दिमाग यानि मष्तिष्क पर नियंत्रण किसका है ?➡मन का।
और मन पर नियंत्रण ?➡ परमात्मा का।
विग्यान की भाषा में कह सकते हैं  कि ऊर्जा का !
सत्य है कि उर्जा का पता स्वयं उर्जा नही कोई बाहर होगा तभी पता लगा पाएगा । यानि आँख स्वयं आँख को नही देख सकती ।
अब कोई भी पता लगाने वाले चीज चाहे वह शिव की इच्छा से सृष्ट जीव और जगत ही क्यों न हो इनका अस्तित्व उस उर्जा के बाद ही होगा !

■तो यही पर विग्यान की उत्पत्ति होती है यानि मनुष्य अपने भौतिक पक्ष को जाने ये भी शिव की इच्छा ही होगी न ।
जिसकी शुरुआत ही किसी की इच्छा से होती हो निश्चित ही वो सीमित होगा । इसलिए अब हम कह सकते हैं न की विग्यान हमारी आपकी बुद्धि से उपजा एक आयाम है ।
और आपकी बुद्धि तो एक रोते हुए बच्चे को हंसाने में हार जाती है। इतनी ही औकात है इसकी ।
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◆ चलो थोड़ा और अंदर घुसते हैं इस सब्जेक्ट पर
विग्यान के हिसाब से विग्यान की शुरुआत देखते हैं !!
*ये तो आप जान गये कि शिव की इच्छा ही विग्यान है।*
विग्यान कहता है  कि विग्यान का अस्तित्व ग्रीक 460 to 376 b.c. एरिसटोटल 384 to 322 b.c.  इसी समय थोड़ा विग्यान पर  विचार शुरु हुआ था जिन्हें आधुनिक विग्यान या वैज्ञानिक कह सकते हैं । उस वक्त के और भी वैज्ञानिक हो सकते हैं । ये विग्यान का तर्क है।
## अब चलो विग्यान की कुछ हवा निकालते हैं ##

■विज्ञान का योगदान निश्चय ही अभूतपूर्व हैं लेकिन यहाँ हवाई जहाज भी बनते हैं तो प्रेरणा पक्षियों से ही ली जाती है। अंतरिक्ष में हमारी पृथ्वी से कही ज्यादा बड़े अरबों ग्रह हैं जिनका पता विज्ञान को अभी तक नहीं है।
विज्ञान कहता है ये दुनिया आखिर कैसै ? अध्यात्म कहता है उसने बनायी है तो रहना सीखो।
विज्ञान इलेक्ट्रान खोजता है तो अध्यात्म कहता है किसने बनाया होगा इलेक्ट्रान । विज्ञान कहता हैं कि  हाइड्रोजन और आक्सीजन मिलाया तो पानी बना। अध्यात्म कहता है आखिर कौन सी वो ताकत है इसके पीछे जिसने दो हाइड्रोजन और एक आक्सीजन को मिलाया होगा ।

■वो यह नही बता सकते कि इस जीवन की उत्पति कहा से है। ये सोच कैसे पैदा होती है। व्यक्ति का अस्तित्व क्या है । ये ब्रह्माण्ड कैसे है क्यो है ? खून नही बना सकते सांसे ही क्यो चाहिए जीने के लिए ? क्या उद्देश्य है हमारा ?
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बाद
★इसलिए न्यूटन ने कहा कि वो ऊर्जा एक तानाशाही निर्माता है जिसका अस्तित्व सारी सृष्टि की भव्यता के सामना  इनकार नहीं किया जा सकता है। ये हैं हमारी दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक ।
सत्य ही है न कि जहा विग्यान की सीमा समाप्त हो जाती है वहां से अध्यात्म शुरु होता है ।
गैलिलियो ने भी कहा था ,भगवान शब्द में सिद्धांत  में आपके काम में एव॔ प्रकृति से जाना जाता है।
सच भी है विज्ञान ने तोड़ कर पता लगाया लेकिन कौन है वो जो इसे जोड़े रखता है ?
मैं व्यक्तिगत तौर पर यह मानता हूं कि विज्ञान और अध्यात्म दोनों सत्य की खोज में लगे हुए हैं इसमे कोई शक नहीं ।
विज्ञान तथ्यों का एक व्यवस्थित अध्ययन जरूर  है लेकिन उस अमित, अनंत, अपार, असीम परमात्मा के सामने सूई के नोंक के बराबर भी नहीं। विज्ञान सीमित है लेकिन अध्यात्म असीम ।

★एक बात जरूर याद  रखिएगा अगर उसने हमे पैदा किया है या ये दुनिया बनायी है तो निश्चित ही विज्ञान की पहचान भी हमारे होने के बाद ही हो सकती है ।

★अंत में ये जान लीजीए कि जीवात्मा तो एक आत्मा है, भौतिक शरीर पहने हुए है और आपको पता है कि आत्मा अत्यंत सूक्ष्म है। यह आकाश, मन और ऊर्जा की तुलना में भी सूक्ष्म है। चेतना और बुद्धि आत्मा से संबद्ध  हैं, शरीर से नहीं। चेतना तो आपकी आत्मा के अस्तित्व का सबूत है ! इस बात का पता दुनिया का कोई विज्ञान नही लगा सका कि आखिर मैं हूं कौन ?
शिव शिष्यता आपको यह उर्जा देती हे कि आप स्वयं को वैज्ञानिक ही नही सबसे बड़ा वैज्ञानिक बना सकते हैं यानि खुद को शिव बना सकते हैं क्योकि आप उसी की उर्जा है तो उस जैसा क्यो नहीं बन सकते !
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● शिव से बड़ा तो कोई वैज्ञानिक नहीं है न।
———- व्याख्या मोनू भैया द्वारा !!

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