सवाल :- आखिर मोक्ष का रहस्य या विज्ञान है क्या? क्यों आवश्यकता पड़ी होगी आखिर मोक्ष जैसे विधान की ?
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Sahab shree harindranand ji |
अच्छा ये बताईए किसको किसको चाहिए मोक्ष। मैं अभी दे सकता हूं ।
जितनी ताकत है लगा दूंगा पर दूंगा ।किसी को नही चाहिए क्या ?
ओहो ! मोक्ष का एतना भी वैल्यू नही है ?
इसी को कहते हैं मोक्ष । मोक्ष शिव के सानिध्य के आलावा कुछ नहीं है । मोक्ष एक स्थिति है आनंद की, शिव के मानिंद होने की।
दुनियाभर की किताबे आपको दिग्भ्रमित करेगी कई मोक्ष मुक्त होना है। जितने धर्म उतनी व्याख्या लेकिन मुक्त कौन करेगा जो आपको बंधन में डालेगा । राईट?
यानि कह सकते हैं न कि जब बिजली बनेगी तो बिजली से बचने का उपाय भी बनेगा ? राईट ?
यानि जब जीव और जगत की स्थितियां बनेगी तब जीव के जीने रहने के लिए उपाय भी बनेगे? राईट ?
हम कह सकते हैं न कि जब वो परमात्मा जीव बनाएगा तो सबकुछ योनिगत होगा या है ?
यही उपाय जो इश्वर द्वारा ईश्वर तक पहुंचने के लिए सृजित है उसे मोक्ष की प्रकिया कहते हैं ।
जीव जब श्रांत और क्लांत हो कर बंधनो से मुक्त होना चाहता है यानि शिव में समाहित होना चाहता है या हो जाता है तो उसे मोक्ष कहते हैं ।
जीवात्मा में परमात्मा की प्रतीति होने लगना मोक्ष की प्रकिया में जाने का संकेत है । ध्यान रहे मैंने पहले ही कहा है शिव का सानिध्य ही मोक्ष है ।
यानि जीव का शिव होना ही मोक्ष का विधान है।
इस व्याख्या से जुडी जिज्ञासाएँ -
1.शिव शिष्यता भी मोक्ष की ही एक प्रक्रिया है यानि ?
जवाब :- बिल्कुल ।
2.जीवात्मा में परमात्मा की प्रतीति के क्या लक्षण हो सकते हैं। हमें तो पता नहीं परमात्मा कैसे हैं ।
जवाब :- परमात्मा = शिव या ईश्वर।
मैने बोध की बात कही चेहरे की नहीं। जैसे मां का एहसास बच्चे के सीने में ठीक वैसे ही परमात्मा का एहसास जीवात्मा में।
हमे शिव से मोहब्बत है । अब मोक्ष मिले या दोजख क्या फर्क पड़ता है।
अब चाहे सर फूटे या माथा यारा मैंने तो हां कर दी ।
3.क्या सृजन की प्रक्रिया और योनिगत होना समानांतर है ?
जवाब :- नहीं। परमात्मा की सृजन शक्ति को ससृच्छा कहते हैं । सृजन एक प्रक्रिया है लेकिन कर्म फल या प्रारब्ध जब तक आरोपित नहि होंगे वो जीव नही हो सकता । आप कह सकते हैं कि अभिन्न है । सृजन होगा तो बाकी चीजें खुद बखुद आरोपित हो जाएंगी ।
निर्माण के बाद ऊर्जा शक्ति बनाने में निहित है, इस प्रकार ये सहायक होते हैं। शिव ऊर्जा के अनंत स्रोत हैं । जैसा कि आप जानते हैं । उतपत्ति और लय दोनों यहीं से संचालित होते हैं । तो अगर किसी चीज़ की उत्पत्ति या निर्माण या सृष्टि वहाँ से हुयी जैसे मानव तो उसके जीवित रहने के लिए जो भी चीज़े आवश्यक होंगी उन सभी के निर्माण में भी ऊर्जा लगेगी और वो इनका निर्माण करेंगे ।
4.कर्मफल को survival equipment कह सकते है ?
जवाब :- पूर्णतः नहीं । कर्म फल या प्रारब्ध आपके भोगने की व्यवस्था है।
कोई एक कर्मफल जो की कही जबतक लागू न किया जाये तब तक कार्य ही नही करेगा।
जैसे मोबाइल ख़रीदा है आपने। फिर उसको चलाने के लिए सिम कार्ड चाहिए कि नही ?
वाहन का ईंजन है आपका कर्म फल।
और सांसे हैं शिव या ईंधन ।
---- मोनू भैया की व्याख्या
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1 टिप्पणियाँ
अच्छा लगा ।
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