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Sahab shree harindrannd ji |
📜 !! ॐ नम: शिवाय और नम: शिवाय !!📜
(एक मात्र जानकारी के लिये )
शिव पुराण के अनुसार :--
➖'प्र ' नाम है प्रकृति से उत्पन्न संसार रूपी सागर का !
'नव ' का अर्थ है नाव अर्थात भवसागर कॊ पार लगाने वाला !
इसलिए ॐ कार कॊ प्रणव कहाँ गया है !
प्रणव के दो भेद है - पहला स्थूल और दूसरा सूक्ष्म ।
➖एक अक्षर रुप !! ॐ !! है , उसे सूक्ष्म प्रणव कहते है ।
"नम : शिवाय " इस पाँच अक्षर वाले प्रणव कॊ स्थूल प्रणव कहते है ।
➖ॐ - जब सृष्टि का निर्माण शिव की इक्षा से हो रहा था उस समय सबसे पहले प्रकाश पुंज ( किरण ), के साथ एक ध्वनि निकला "ॐ" और आज भी "ॐ" की धुन इस जगत मॆ बज रहा है उस आवाज की तीर्व्ता इतनी मध्यम है जो हमारे कान सुन नही सकते ! विज्ञान भी इसे सही मानते है ।
➖इससे स्पष्ट होता है की ईश्वर की सूक्ष्म स्वरूप का " श्री " सूचक है ॐ !
ॐ किसी भी देवी , देवता के मंत्र के आगे श्री सूचक के रुप मॆ लगाये जाते है!
ॐ मॆ छ: अक्षर होते है,
बल्कि नम: शिवाय मॆ पाँच ।'नम :शिवाय ' का अर्थ होता है ' शिव कॊ नमन '। इस पंचाक्षरी का चिरकाल से प्रयोग होता आया है और इसकी सूक्ष्म तरंगों मॆ अक्षय ऊर्जा का प्रवाह होता है और शक्ति का पुंज है । हालंकि साहब श्री के अनुसार नम :शिवाय से सिर्फ़ प्रणाम करना है ।
ये पाँच अक्षर से ही शिव कॊ पंचानंद यानी पाँच मुख वाले कहाँ जाता है ! जो शिव के पाँच मुख से निकला है :-
➖नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे "न" काराय नमः शिवाय!
इसका अर्थ है :-
हे महेश्वर! आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं। हे (तीन नेत्रों वाले) त्रिलोचन आप भस्म से अलंकृत, नित्य (अनादि एवं अनंत) एवं शुद्ध हैं। अम्बर को वस्त्र सामान धारण करने वाले दिग्म्बर शिव, आपके न अक्षर द्वारा जाने वाले स्वरूप को नमस्कार।
चन्दन से अलंकृत, एवं गंगा की धारा द्वारा शोभायमान नन्दीश्वर एवं प्रमथनाथ के स्वामी महेश्वर आप सदा मन्दार पर्वत एवं बहुदा अन्य स्रोतों से प्राप्त्य पुष्पों द्वारा पुजित हैं। हेम धारी शिव, आपको नमन है।
हे धर्म ध्वज धारी, नीलकण्ठ, शि अक्षर द्वारा जाने जाने वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के दम्भ यज्ञ का विनाश किया था। माँ गौरी के कमल मुख को सूर्य सामान तेज प्रदान करने वाले शिव, आपको नमस्कार है।
देवगणो एवं वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वार पुजित देवाधिदेव! सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि आपके तीन नेत्र सामन हैं। हे शिव आपके व अक्षर द्वारा विदित स्वरूप कोअ नमस्कार है।
हे यज्ञ स्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन हैं। हे दिव्य अम्बर धारी शिव आपके य अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को नमस्कारा है ।
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