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Sahab shree harindranand ji |
लोगों की मान्यता है कि जीवन में एक गुरु कर लिया तो दूसरा नहीं करना चाहिए शायद मुझे लगता है कि ये बातें जरूर किसी गुरु ने अपनी स्वार्थ के लिए यह बात को सिखाया,
जहां तक मुझे लगता है लगता ही नहीं बल्कि प्रमाणित भी कर सकता हूं कि यह बात मे बिल्कुल स्वार्थ छूपा है।
गौर करे तो??
एक व्यक्ति बहुत बड़ा वैज्ञानिक बन गया है,
तो क्या वह एक ही गुरु के सानिध्य में रहकर वैज्ञानिक बन गया है??
बिल्कुल नहीं,,
वह निश्चित ही प्राइमरी स्कूल में जॉइन हुआ और वैज्ञानिक बनने तक में वह कैयौं गुरु के सानिध्य में गया है,और जाना ही पडे़गा, अन्यथा वैज्ञानिक बनना संभव नहीं। क्योंकि हर गुरु का अपनी अपनी सामर्थ होता है, जो हर गुरु आपको ईश्वर तक नहीं लेकर जा सकता है
हर गुरू आपको वैज्ञानिक नहीं बना सकता है इसलिए गुरु गुरुओं का श्रेणी है ।
लेकिन आज जब यह बात बताया जाता है कि शिव विश्व गुरु है
गुरुऔं के गुरु है सुप्रीम गुरु है
अध्यात्म में सबसे ऊपर का गुरु है सुप्रीम गुरु है शिव गुरू ,जब कहा जाता है कि उस शिव को अपना गुरु बनाया जाए अर्थात उनका शिष्य बना जाए तो कई लोग यह सवाल करते हैं
की गुरु हमने कर लिया है अब दूसरा गुरु नहीं करना है। जबकि कोई भी अध्ययन का एक मात्र उद्देश्य है कि अध्ययन की पराकाष्ठा तक पहुंचे ।अध्यात्म की पराकाष्ठा तो शिव ही है ।
और शिव ही स्वयं गुरु है ,तो फिर यह बात क्यों आता है कि हमने गुरु कर लिया है,अब गुरु नहीं बदलना है?? इसे स्पष्ट है कि कहीं न कहीं लोगों के अंदर अज्ञानता है।।
हां आप यदि विश्वगुरु सुप्रीम गुरु शिव को अपना गुरु बनाएं हैं
या शिव के शिष्य बनने की दिशा में है तो फिर गुरु बदलने की जरूरत नहीं। क्योंकि ,गुरुओं के गुरु शिव है सुप्रीम गुरु शिव है। शिवगुरु के अलावा किसी गुरु के सानिध्य में है तो आपको गुरु बदलना अनिवार्य है, शिव गुरु के सानिध्य में जाना होगा तभी कोई भी गुरु शिष्यता सार्थकता होगी।
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🙏आप सभी गुरु भाई बहनों प्रणाम🙏
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