शिव के शिष्य को माहौल के अनुसार रहना चाहीएय समाज के अनुशार रहना चाहीये,या फिर शिव शिष्य रहना चाहीये.?

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Sahab shree harindranand ji

शिव  शिष्य तो जो की वरेण्य गुरु भ्राता साहब श्री हरिन्द्रानन्द जी के परिधि में रहने बाले गुरु भाई बहन का माहौल होगा उसी में रहना ज्यादा पसंद करेगा अच्छा भी लगता है।

जिस माहौल में अपने गुरु की बात हो  चूंकि एक प्रेमी के लिए तो बस एक ही जगह एक ही माहोल पसन्द आता है।

उसके प्रेमी का कोई बात हो उससे अच्छा कोई जगह नही बुझाता है,
सुनते है कि साहब भी कभी कभी कहते  है न कि एक माहोल बनाया जाय जहां की शिव गुरु की बात हो जहाँ प्रेम ही प्रेम हो जहां मात्र एक सोंच हो कि 
एक भजन है 
आ चल के तुझे मैं लेके चलूं शिव गुरु की चर्चा तले, जहां गम भी न हो आँशु भी न हो बस प्यार ही प्यार मिले ।।
अगर ऐसा माहौल है तो मेरे ख्याल से रहना चाहिए  । 
 हाँ अगर साहब श्री के बिचारधारा से अलग हट के कोई माहौल है तब तो भैया प्रणाम करके वहां से  हटने में ही मेरे ख्याल से फायदा चूंकि वैसे माहौल में शिव शिष्य क्या करेगा जहाँ साहब श्री के चाहत पर चलने बाले ही न हो  ।
इस विषय पर मैं इतना ही कहूंगा कि शिव शिष्य को साहब श्री के चाहत के अनुसार चलना और रहना चाहिए 
अब समाज के अनुसार तो भैया इस पर क्या कहा जाय समाज मे रहतें है
 तो सामाजिक व्यबस्था है।
तो कुछ न कुछ उत्तरदायित्व तो बनता ही है  लेकिन यहाँ एक और बात है भाय की शिव शिष्य को तो शिव शिष्यता साहब कहते है ये प्रेम की विधा है
 और आज तक  कोई भी ईश्वर से ही प्रेम करने वाले हुए हैं।

चाहे वह मीरा हो या मंसूर हो सुकरात हो यही समाज के लोगो ने तो उसे प्रतारणा दिया है।
 गालिया दी है सूली पर चढ़ाया है हम कैसे कहे कि समाज की ओर से चले  चलना है तो गुरुकी ओर चलना ही मात्र सही होगा चूंकि कहा जाता है 
न गुरु अगर खुस रहे तो सब कुछ ठीक हों जाता हैं 
इश्लिये महादेव गुरु साहब श्री के अनुसार चलने से समाज के लोग भले कुछ दिन गाली भी बक सकता है 

लेकिन महादेव के चाहत के अनुसार चलते रहे उनके चरण में लिपटे रहेंगे तो एक दिन वही समाज का लोग सम्मान भी देने लगता हैं 
इश्लिये सुनेगें सबका लेकिन चलेंगे करेंगे रहेगे  मात्र अपने गुरु एवं साहब श्री के निर्दाशनुसार । 
अब आपने लिखा है कि या फिर शिव शिष्य रहना चाहिए   ।
   भैया जब शिव शिस्यं हो ही जायेगा तो क्या बचेगा चूंकि शिव का अर्थ ही कल्याण होता है  
तो जब कोई शिव का शिष्य हो ही जायेगा तब फिर क्या बच जाएगा तब तो फिर हमलोग साहब को देख रहे है उनकी जीवनी को पढ़ रहे है कि चमत्कार सीखने के उद्देश्य से गुरु की तलाश सुरु किये क्या क्या कस्ट नही झेलें और फिर  शिव गुरु जीवन मे हुए भी तो  जगत संसार के लोगों के जीवन मे शिव गुरु उपलब्ध कैसे हो इसी चिंतन में अपना  सब कुछ न्योछावर कर रखे है  ।  इश्लिये भैया शिव शिष्य हो गए तब तो फिर कुछ कहने सुनने की जरूरत ही नही है 
भजन का बोल है न 
अपने आप सुलझ जाएंगे सारे उलझे धागे रे भाई ,
 शिव गुरु जब हो जाएंगी सोई किश्मत जागें रे भाई।



शिव शिष्य रहना चाहिए।



अगर कोई शिव शिष्य होगा तो वो अच्छा माहौल सोचेगा और समाज के लिए भी सोचेगा सब के लिए सोचेगा।



लेकिन समाज पहले बहिष्कार करता है।



लेकिन एक बात याद रखें हम आप?👇🏻



जीसपे जग हँसा है वही इतिहास रचा है।



जैसे :- अभी साहब कहे अपने लिए दया मांगते है तो जगत के लिए भी दया माँगये।



शिव का नाम अर्थ ही कल्याण होता अगर कोई उनका चेला होगा तो उनके जैसा सोचेगा।



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🙏आप सभी गुरु भाई बहनों प्रणाम🙏

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