तीनो लोको से क्या तात्पर्य है?

Sahab shree harinderanand ji
👉तीनो लोको से तात्पर्य तीन  शक्तियो ब्रह्मा, विष्णु, महेश से  है  जो सभी का कार्य बाटा हुआ है ,
 इश्वर के सभी इच्छाएं यही तीनो लोको से संचालित होता है,
तीन लोक तो मै नही देखा है 
पर यह संसार के गति से पता चलता है 
कि तीन लोक इसी संसार मे निहित है 
क्योंकि यहा  ईश्वर की  इच्छा से जन्म , पालन और संहार यानी मृत्यु होता है  इस और ईश्वर की सभी लिलाये इसी संसार मे होता है,
 संसार यानी सृष्टि के निर्माण मै पाँच तत्व और तीन गुणो की भुमिका है ।

गुण का अर्थ होता है बंधन। गुन तीन हे - सत,  रज और तम । ये तीनो गुन मन की अवस्थाएँ है क्योंकि यह चराचर जगत शिव की इच्छा से निर्मित है,
  अवस्थित है और पल - प्रतिपल  विखंडन भी हो रहा है । पाँच तत्वो की उत्पत्ति मे तीन गुण भी है,  और कहा जाता है कि "यह संसार मृत्यु लोक है  लेकिन जो शास्वत  लोक है वह शिव है "
          माना जाता है की उस सार्वभौम सता के पास एक भूमापन (cosmic mind )है !वह करुणा का सागर है 
और समस्त विश्व की समग्र शक्तियों का जनक भी है ।
आईये भगवान शिव को अपना गुरु बनाये।
    जिवन गुरु के बिना अंधकार है।
           जीव की यह रक्तबीज की तरह पनपने वाली इच्छा उस वृहद इच्छा का अंश है 
और जब तक यह इच्छा उस वृहद इच्छा मे समाहित नही होता आनंद नही मिलेगा। आनंद का अर्थ है
 जहा इच्छा करने की विवशता न हो !
    जीवन की  राह बहुत कठिन है चलना !
अगर ना हो तेरा साथ मेरे गुरुवर !
      बस आश मात्र एक बची है गुरुवर !        
अपने  से  कभी मत करना दुर !
,मॆ मर  भी  जाऊँ  गुरुवर तेरा  साथ हो  जन्मों जनम !!
 👉आइये भगवान शिव को अपना गुरु बनाये 

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