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Sahab shree harindranand ji |
इस कार्य के प्रारंभ की पृष्ठभूमि स्वानुभूतियों की अकथ्य लम्बी कहानी है ।
अपनी सीमा में उपलब्ध अशरीरी गुरुओं ,तांत्रिकों एवं घुमक्कड़ औघड़ों का साथ मन को रास नहीं आया।
हताश मनोदशा विवशता में शिव को गुरु मान बैठी।
हताश मनोदशा विवशता में शिव को गुरु मान बैठी।
सोचा कि गुरु साक्षात परब्रह्म हैं
तो परब्रह्म स्वयं गुरु क्यों नहीं।” दूध का जला मटा फूंक-फूंक कर पीने “के अनुभव से ग्रसित ,प्रताड़ित और संशकित मन शिव को गुरु मानकर कुछ जानने और पाने की स्वभाविक जिज्ञासा से व्यग्र होता रहा ।
तो परब्रह्म स्वयं गुरु क्यों नहीं।” दूध का जला मटा फूंक-फूंक कर पीने “के अनुभव से ग्रसित ,प्रताड़ित और संशकित मन शिव को गुरु मानकर कुछ जानने और पाने की स्वभाविक जिज्ञासा से व्यग्र होता रहा ।
कालांतर में घटनाओं का कुछ ऐसा क्रम चला कि पूर्व आरोपित एवं अर्जित शंकाएँ निर्मूल होती गयीं।
अध्यात्मिक आह्लाद ने अध्यात्म में आ गई संक्रांति से प्रत्येक व्यक्ति को मुक्त करने की अंतः प्रेरणा जगायी।
प्रत्येक व्यक्ति को शिव का शिष्य होने के लिए प्रेरित करने का दृढ़ निश्चय संकल्पित होता गया और तब जाना की वैचारिक तल पर हम सबों तक आई सूचना की शिव गुरु हैं,
अध्यात्मिक आह्लाद ने अध्यात्म में आ गई संक्रांति से प्रत्येक व्यक्ति को मुक्त करने की अंतः प्रेरणा जगायी।
प्रत्येक व्यक्ति को शिव का शिष्य होने के लिए प्रेरित करने का दृढ़ निश्चय संकल्पित होता गया और तब जाना की वैचारिक तल पर हम सबों तक आई सूचना की शिव गुरु हैं,
एक यथार्थ है ।
स्वानुभूतियों का सिलसिला अब एक नहीं है।
स्वानुभूतियों का सिलसिला अब एक नहीं है।
अनेक ने शिव को अपना शिष्यभाव देना आरंभ किया हैं
और अपूर्व अनुभूतियों का क्रम चल पड़ा है।
शिव को गुरु मानकर प्रकारान्तर से अनुभूत हुआ कि अविश्वास और अश्रद्धा के दायरे में खड़े होकर भी ज्ञान प्राप्ति की उत्कट अभिलाषा से शिव को गुरु मान लेने की विवशता का स्थायित्व शिव गुरु से परिणाम की स्थिति है ।
श्रद्धा,विश्वास और समर्पण के अभाव में भी महेश्वर शिव की शिष्यता अंकुरित ,पल्लवित ,पुष्पित हो सकती है ,होती है ।
उनकी शिष्यता के फूलों की सुगंध अविश्वास अश्रद्धा, संशय तथा सभी संकीर्णताओ को विनष्ट कर देती है ।
विश्व गुरु शिव स्वयं गुरु हैं।
विश्व गुरु शिव स्वयं गुरु हैं।
यदि संपूर्ण मानव सृष्टि उन्हें अपना शिष्य भाव अर्पित करती है
तो शिव गुरु को विश्व मानव के अभ्युदय का उत्तरदायित्व लेना ही पड़ेगा ।
दूसरी ओर आज विकसित हो रही मानवीय चेतना के प्रेम पूर्ण चरमोत्कर्ष के लिए उस परम चेतना के दया भाव अर्थात गुरु भाव से जुड़ने का एकमात्र विकल्प हीअब ग्राह्य है ।….
तो शिव गुरु को विश्व मानव के अभ्युदय का उत्तरदायित्व लेना ही पड़ेगा ।
दूसरी ओर आज विकसित हो रही मानवीय चेतना के प्रेम पूर्ण चरमोत्कर्ष के लिए उस परम चेतना के दया भाव अर्थात गुरु भाव से जुड़ने का एकमात्र विकल्प हीअब ग्राह्य है ।….
………. साहब श्री हरिंद्रानंद जी
हमारी वेबसाइट पर आने के लिए आपका धन्यवाद।
अगर जिज्ञासा समाधान (Articals) अच्छा लगे तो शेयर करे ताकि ऐसी जानकारी आपकी मदद से सभी तक पहुंच सकें।
अगर किसी जिज्ञासा का समाधान आप चाहते है की यहाँ इस वेबसाइट पर डाला जाए तो कमेंट में जरूर लिखे।।
🙏आप सभी गुरु भाई बहनों प्रणाम🙏
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3 टिप्पणियाँ
बहुत अच्छा लगता है ।
जवाब देंहटाएंMai ek student hu
जवाब देंहटाएंMai jab bhi arji karta hu ya namh shivay karta hu to mera mn ekagr nhi ho pata please help kijiye sahab ji ...maine shiv ko guru 2009 me mana hai . Mujhe parisram karne ki kshamta kaise prapt karu
Mera name Bharat kanaujia varanasi se hu
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