घोर का अर्थ.?

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Sahab shree harindranand ji

हम किसी को कुछ दिए हैं उस के वाद भी उस वस्तु के वारे में मन में चिन्तन होना
और अघोर का हम दिए कुछ उसके वाद मेरे मन में उस वस्तु के प्रति कोई चिन्तन नही होना
एक बार साहब से देवघर की धरती पर एक एक गुरु भाई ने कहाँ की साहब गुरु भाई को कहते है चलो साहब से मिलने तो कहता है क्या होगा जाकर या बहाना बना देत है
जानते हैं दीदी साहब क्या बोले इसपर
साहब बोले जाओ उसको महादेव से जोडो ,जब कोई महादेव से जुडेगा तो हरीन्द्र के पास नंगे पाव बिना चप्पल के चला आएगा...
जरूररत है की व्यक्ति का जुडाव शिव गुरु से हो ,जब कोई व्यक्ति शिव गुरु से जडेगा हरीन्द्रानन्द के लिए नंगे पाव बिना चप्पल के आएगा
जिस दिन व्यक्ति को दुःख चारों और से घेर ले
और उस दुःख से बचने को कोई उपाय न हो
तब एक बार कहके देखियेगया हे शिव आप मेरे गुरु है ,मई आपके शिष्य हु मुझ पर दया कर दीजिये ।
मैं अनुभुत किया हु ये
कहके
आप गुरु को चेक कर सकते है
कर्म की  दिशा कौन बतेयेगा कौन सा कर्म करे कौन बतेयेगा कर्म भूमि पे सांसे कौन चला राहा कर्म करने लायक कौन बनाया जो लोग लोगो की हत्या कर रहे लोगो का अपहरण कर रहे मिलावट कर रहे वो भी कर्म ही है
 कर्म की राह शिव गुरु ही बताते है
इससे स्पस्ट है की कर्म भी गुरु ही बताते है
तभी कर्म की दिशा सही होती है
भगवान शिव, जो चिरकाल से सर्वोच्च गुरू के पद पर आसीन हैं,
 उनकी शिष्यता की धारा जन मानस में  सभी  शिव शिष्य/शिष्याओं के सहयोग से प्रवाहित हो रही है। 
यह प्रवाह अक्षुण रहे, सचमुच संप्रवाह हो जाय इसी संकल्प के सहारे आगे बढ़ना है।
 यह स्मरण रखना है की शिव की शिष्यता में शिव गुरू हैं, 
कोई शिष्य गुरू नही है। शिव ही हमारे गंतव्य हैं, 
हमारी गति हैं और हमारे गुरू हैं।
परवाह  मन पे गुरु भारी है की नही सम्प्रवाह निरंतरता में शिव गुरु की तरफ मन का होंना
तो क्या उसके जिवन मे गुरु नही हो सकता है?  वह अज्ञानता के कारण ही बोलता है , मैंने देखा है 
कि एक व्यक्ति जो रामायण पाठ करता है पर उसको जब कहे तो उन्होंने कहा गुरु की आवश्यकता नही है 
हमे हमारे राम के नाम लेने से सब कुछ हो जाता है तो गुरु क्यो  बनाये। और आज वही व्यक्ति शिव को अपना गुरु बनाये है
 और गुरु कार्य भी करते है तो   सही कर्म गुरु के आदेश पर चलना ही कर्म है जो गुरु के बिना संभव नही है,

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