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शिवपुराणः
शिवपुराण की रूद्र संहिता में उल्लेख मिलता है कि महादेव जी ने कहा,, विधाता, मैं जन्म और मृत्यु की भय से युक्त अशोभन जीवों की सृष्टि नहीं करूंगा ,क्योंकि वे कर्मों के अधीन हो दुख के समुद्र में डूबे रहेंगे। मैं तो दुख के सागर में डूबे हुए उन जीवों का उधार मात्र करूंगा,गूरू स्वरूप धारण करके, उत्तम ज्ञान प्रदान कर ,उन सबको संसार सागर से पार करूंगा।
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शिवपुराण की वायवीय संहिता में शिव के योगाचार्य होने और उनके 112 शिष्य -प्रशिष्यौं का विशद वर्णन मिलता है।
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पद्पुराण :पद्मपुराण मूलतः विष्णु जी पर आधारित है और उसमें शिव को जगतगुरु कहा गया है।
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ब्रह्मवैवर्त पुराण:
ब्रह्मवैर्वत पुराण मे ,असित मुनि द्वारा रचित शिव स्त्रोत के प्रथम सुक्त में शिव को जगतगुरु, योगियों के स्वामी और गुरुओं के गुरु भी कहा गया है।श्लोक ईस प्रकार है।
जगद्गुरो नमस्तुभ्यं शिवाय शिवदाय च।
योगेंद्रणां च योगिंद्र गुरुणां गुरुवे नमः।।
अर्थात हे ! जगत गुरु आपको नमस्कार है ,आप शिव है और कल्याण के दाता है योगियों के स्वामी है तथा गुरुओं के भी गुरु है आपको नमस्कार है।
शिवभक्त ,,बणांसूर ,,द्वारा रचित शिव स्त्रोत में महादेव को ज्ञान का बिज और गुरुऔं के गूरू कहा गया है।
योगिशवरं योगबिजं योगिनां च गूरोगूरूम।
अर्थात, योगियों के ईश्वर है ,योग के बीज तथा योगियों के गुरु के भी गुरु है तथा-
श्लोक ,ज्ञानानंद ज्ञानरुप ज्ञानबिजं सनातनम।
जो ज्ञान के आनंद स्वरूप ज्ञान रूप है ज्ञान के बीज है सनातन है भगवान शंकर को प्रणाम है उसी पुराण में हिमालय द्वारा रचित शिव स्त्रोत में महादेव को विद्वानों का गूरू कहा गया है।
विदूशां जनकस्वं च विद्वांश्च विदूशां गूरूः
हिमालय जी कहते हैं
,हे परम शिव आप ही विद्वानों के जनक है विद्वान तथा विद्वानों के गुरु है।
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स्कंद पुराणः
स्कंद पुराण की पृष्ट संख्या 677 में एक श्लोक की प्रथम पंक्ति ही कह रही है कि शिव गुरु है, और श्लोक इस प्रकार है।
शिवो गुरूः शिवो देवः शिव बंधूः शरीरिणाम्।
शिवो आत्मा शिवो जिवः शिवादन्यन किंचन।।
अर्थात, भगवान शिव गुरु है ,शिव देवता है, शिव ही प्राणियों के बंधु है, शिव ही आत्मा है,और शिव ही जीव है ।शिव से भिन्न दुसरा कुछ भी नहीं।
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