समस्त विधाओं और समस्त शक्तियों के जनक हैं।
महेश्वर शिव :- " या शक्ति शिवेस्य शक्ति" वह महेश्वर शिव समस्त शक्तियों के जनक हैं।
अपनी शक्तियों से ही जाने जाते शिव हैं।
शिव और समस्त सृष्टि में सर्वोच्च पद पर बैठे हुए हैं अगर आप रोग से ग्रस्त हैं।
तो वह बैद्यनाथ हैं।
आप उनको गुरु बनाते हैं। तो बैजनाथ सब रूप से परिणाम तुरंत आने शुरू हो जाते हैं क्योंकि गुरु शिष्य की जिम्मेवारी का निर्वाहन करते हैं।
अगर आप काल से परेशान हैं।
समय आप के विपरीत है तब भी वह महाकाल हैं। शिव को गुरु बनाने के उपरांत महाकाल स्वरुप से आसानी से परिणाम आने शुरू हो जाते हैं। अगर मृत्यु का भय है।
तो वह शिव मृत्युंजय और इतिहास भी इसका गवाह है।
और शिव शिष्यता भी इसकी गवाह है।
कि मृत्यु के भय से लोगों ने शिव को अपना गुरु माना है और आज तक जिंदा है।
शिव शिष्यता में चल रहे हैं।
मृत्यु का भय उनके मन से चला गया अगर आपको जगत का सुख चाहिए तो वह महेश्वर शिव महादानी हैं। महादेव हैं। औघड़ दानी है वह अघोरेश्वर भी हैं योगेश्वर भी हैं।
कपालेश्वर भी हैं निहंगो के शमशानी भी है ।
गृहस्थों के उमा महेश्वर भी हैं ज्ञान चाहिए तो ज्ञान के निधि अगम कहा गया है।उन्हें गुरुओं के गुरु गुराधिपति कहा गया है।
भूत से परेशान है तो भूतनाथ भी है वह सर्वव्यापक हैं। सृष्टि के रोम रोम में बसे हैं।
कण कण में बसे हैं वह समस्त संगति में भी हैं। तो समस्त विसंगति में भी हैं। इसीलिए शिव को कहा जाता है की शिव विसंगति में भी संगति की स्थापना हैं।
शिव की संगति में बुरे से बुरा व्यक्ति भी अच्छा आचरण करने लगता है अच्छी मनोदशा में आ जाता है।
गुरु शिष्य के स्तर पर उतरते हैं शिष्य का मन शनै शनै शिव भाव में प्रवेश करने लगता है।
शिव शिष्यता की उपलब्धि:- जो भी जिस हाल में चला हो चाहे, किसी ने श्रद्धा में शिव को गुरु माना हो चाहे अश्रद्धा में माना हो चाहे विश्वास में शिव को गुरु माना हो चाहे अविश्वास में शिव को गुरु माना हो चाहे मजाक में शिव को गुरु माना हो चाहे अपनी परेशानियों से परेशान होकर के शिव को गुरु माना हो जिस स्तर पर भी जिसने शिव को गुरु माना है।
महेश्वर शिव गुरु का काम करते हैं।
और शिष्य की जवाबदेही लेते हैं।
गुरु होने का पूरा पूरा उत्तर दायित्व निभाते हैं।
और आज देखने को मिल रहा है। कि लोगों में शिव की शिष्यता पल्लवीत और पुष्पित हो रही है लोगों में शनै शनै साधुता उतरने लगी है।
मनसा वाचा कर्मणा लोग शिव के शिष्य हो रहे हैं लोग अध्यात्म की बात करते हैं।
शिव की बात करते हैं शिव में एकमेंक होने की बात करते हैं।
दुख में भी सुख का अनुभव करते हैं और अपने महादेव गुरु का काम करते हैं
लोग आखिर लोगों के मन पर वह शिव गुरु रूप में भारी पड़ रहे हैं। और गुरु का काम ही होता है।
जिस शिष्यात्मा के मन पर जगत का आकर्षण भारी है उस शिष्य के मन पर स्वयं भारी पड़ कर उसे परमात्म स्थिति में मोड़ दे यानी धरती के आकर्षण को न्यून करके उस परमात्मा के प्रति आकर्षण पैदा कर दे यही गुरु का मूल काम है।
शिष्य का मन परमात्मउन्मुख होने लगता है।
और अब यह शिव शिष्यता में दिखाई देने लगा है।
यह गुरु शिव की उपलब्धि है। और विदित है की गुरु की पहचान शिष्य से होती है।
क्योंकि गुरु को अपने शिष्य के अविकसित ज्ञान के स्तर पर उतर कर के उसे पूर्ण ज्ञान की स्थिति में ले जाना पड़ता है
और यह महादेव बखूबी कर रहे हैं और यह सब खेल खेल में हो रहा है कोई कठिन साधना नहीं कोई कठिन उपासना नहीं कोई लंबी तपस्या नहीं बिना किसी बंधन बिना किसी वरजर्ना बिना किसी यम नियम के यह सरलता से हो रहा है
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