गुरु शक्ल उपचारा.?

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साहब श्री हरिन्द्रानंद जी

भगवान शिव को अपना गुरुबनायें।

मानव जीवन को जन्म से ही ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है
 मानव का बच्चा एकदम सुषुप्त अवस्था में जन्म लेता है 
उसे बोध कराया जाता है 
दूसरे जिवों  में ऐसा नहीं है दूसरे जीवो को उस परमात्मा ने प्राकृतिक बुद्धि दी हैं।लेकिन मानव को बुद्धि विवेक दिया है 
जिसे सरल भाषा में सोचने समझने की शक्ति कहते हैं 
बुद्धि विवेक तो है मानव के पास लेकिन कहा गया "केहि विधि पनपे विवेक उर बिन गुरु पद अनुराग" उसकी बुद्धि को जागृत करने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है 
गुरु के अभाव में वह बुद्धि विवेक कार्य तो करेगा लेकिन दिशाहीन होगा इसीलिए साहब श्री ने शिष्यानुभूति में भी लिखा है "दूसरी ओर आज विकसित हो रही मानवीय चेतना के प्रेमपूर्ण चरमोत्कर्ष के लिए उस परम चेतना के दया भाव अर्थात गुरु भाव से जुड़ने का एकमात्र विकल्प ही अब ग्राह्य है
" रामकृष्ण परमहंस जी के शिष्य थे श्री राम लाटू वह हमेशा अपने शिष्य से कहते थे कि "मानव तो निरूपाय हैं रे लाटू गुरु उपाय हैं
"क्योंकि इस दुनिया में ज्ञान के अभाव में कुछ भी नहीं किया जा सकता अगर किया भी जाता है तो उसके परिणाम नहीं दिखाई दे रहे है
 बलिक विपरीत परिणाम दिखाई दे रहे हैं किसी भी जप तप साधना आराधना उपासना छठ व्रत का परिणाम भी गुरु की दया पर ही आश्रित है
 इसलिए प्रथमतः शिष्यता ही किसी भी लौकिक या पारलौकिक प्रयास का प्रथम सोपान शिष्यता ही है मानव का गुरु के आश्रम में जाना ही उसके जीवन को सार्थक और सिद्ध करता है।
 गुरु ही शक्ल उपचारा होते हैं क्योंकि किसी भी समस्या का समाधान ज्ञान में ही निहित है और गुरु के पास ज्ञान है कोई भी गुरु अपने शिष्य को वृद्ध बनाते हैं वृद्ध का अर्थ होता है ज्ञानवान बनाते हैं ज्ञान और अनुभव से परिपूर्ण करते हैं।सकल मतलब होता है सभी..
उपचार मतलब निदान..साहब श्री के जीवन मे हर मोड पर गुरु खरे उतरे है, 
जब मधेपुरा सिंहेश्वर मंदिर में साहब श्री  ने महादेव से कहाँ,"तनी इज्जत रखिह बुढऊ दया कर दीं " साहब श्री कहते है गुरु अपने शिष्य के तल पर उतरकर समझाते है..
शिष्य के हर आवश्यकताओं की पूर्ति कर गुरु उसे समझाने का प्रयास करते है।
और समय के अंतराल मे गुरु अपनी दया से शिव की और लिये चलते है।
शिव शिष्यों को गुरु चर्चा मे जाना होता है और जो भी चिजे बाधक बनती है शिष्य के रास्ते मे वो खत्म हो जाती है माहोल बनता जाता है लोग शिव शिष्य होते जाते है..महादेव अपने शिष्यों के लिए रोटी दाल से लेकर शिव बनाने तक की संपूर्ण जवाबदेही लेते है ।
और लिया है ,जो काम डॉक्टर नही कर सका महादेव ने किया है,जीवन से दुख कम होने लगे है..।यही तो है गुरु सकल उपचारा..आओ, चलें शिव की ओर


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🙏आप सभी गुरु भाई बहनों प्रणाम🙏

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