Sahab shree harindrananad ji |
➡संसार यानि प्रकृति आठ जड़
तत्वों (पाँच स्थूल तत्व और तीन दिव्य तत्व) से मिलकर बना है।
स्थूल तत्व = जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी और आकाश।
दिव्य तत्व = बुद्धि, मन और अहंकार।
हमारे स्वयं के दो रूप होते हैं एक बाहरी दिखावटी रूप जिसे स्थूल शरीर कहते हैं और दूसरा आन्तरिक वास्तविक दिव्य रूप जिसे जीव कहते हैं। बाहरी शरीर रूप स्थूल तत्वों के द्वारा निर्मित होता है और हमारा आन्तरिक जीव रूप दिव्य तत्वों के द्वारा निर्मित होता है।
सबसे पहले हमें बुद्धि तत्व के द्वारा अहंकार तत्व को जानना होता है, (अहंकार = अहं + आकार = स्वयं का रूप) स्वयं के रूप को ही अहंकार कहते हैं। शरीर को अपना वास्तविक रूप समझना मिथ्या अहंकार कहलाता है और जीव रूप को अपना समझना शाश्वत अहंकार कहलाता है।
जब तक मनुष्य बुद्धि के द्वारा अपनी पहिचान स्थूल शरीर रूप में करता रहता है तो वह मिथ्या अहंकार (अवास्तविक स्वरूप) से ग्रसित रहता है तब तक सभी मनुष्य अज्ञान में ही रहते है। इस प्रकार अज्ञान से आवृत होने के कारण तब तक सभी जीव अचेत अवस्था (बेहोशी की हालत) में ही रहते हैं उन्हे मालूम ही नही होता है कि वह क्या कर रहें हैं और उन्हे क्या करना चाहिये।
इसलिए मनुष्य के जीवन मे गुरु होना बहुत आवश्यक ही नही अति अनिवार्य है तो आइये भगवान शिव को अपना गुरु बनाये।
0 टिप्पणियाँ