🎴सांसारिक सुख पाने के लिये उस ईश्वर से सौदा कर बेठ्ते हैं जो हमारे जीवन के हर पहलू मे साथ देते हैं बल्कि वही मात्र सच्चे साथी हैं !
इस संसार मे जितनी भी भोग के वस्तु हैं
जिसे हम अज्ञानता वश अपना समझ रहे हैं
वह वास्तव मे मेरा भोग के लिये ही वह ईश्वर ने बनाया है
पर अधिकार जमाने के लिये नही!
इसी लिये साहब श्री कहते हैं
हम भोग को भोगते नही अपितु स्वयं भुक्त हो जाते हैं !
📒अब प्रश्न उठता है की इस सँसार मे मेरा अपना क्या है ?
➖ कहा जाता है कि इस संसार के मूल मे शिव है जिनके मात्र इक्षा से इस सँसार का सृष्टि हुआ तो उनके बनाये हुये संसार की हर वस्तु से प्रेम होना चाहिये हमको आपको क्योकि शिव ने तो एक जगत बनाया पर हम मानव उस जगत को देश से राज्यमे बाँट दिये और एक मानव धर्म को चार जाती मे बाँट दिये बल्कि वह ईश्वर को भी बाँटने मे थोड़ा भी संकोच नही किये यह अज्ञानता का चरमोत्कर्ष नही तो क्या हैं ?
इसलिये कहा जाता है की '' जिसे उस ईश्वर की बनाई गयी चीजो से प्रेम नही भले उसे शिव से प्रेम केसा''
जिसे शिव से प्रेम होगा उसे जगत के हरेक प्राणी से प्रेम होगा !
इसलिये अभी के इस समय मे शिव को अपना गुरु बनाले तो सँसार की कोई ऐसी वस्तु नही जो आपको सुख की अनुभूति न कराये!
क्योकि शिव गुरु वह गुरु हैं
जो अपने शिष्यों को भोग और मोक्ष दोनो अभिन्न रूप से देते हैं !
आइये भगवान शिव को अपना गुरु बनाये 🙏
1 टिप्पणियाँ
Shambhve guruve namah
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